रात-दन

भोगूं छूं

एक हडूडो

सोच-बच्यार को!

बच्यार आवै छै

कुस्तमपछाड़ा होवै छै

सूगली सीक हांसी हांस’र

चली ज्या छै

ठोस निरणै खडै

तो कविता मांडूं।

स्रोत
  • सिरजक : प्रेमजी ‘प्रेम’ ,
  • प्रकाशक : कवि री कीं टाळवीं रचनावां सूं
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