केई बरसां पछै

इण बात री ओळूं आसी

जद आपां आप-आपरै

मुकाम माथै पूग जास्यां

जद होस्यां अेकला

सागै

बीत्योड़ी बातां चेतै आसी

सागै-सागै पोसाळ जावता

अेक-दूजै नै

देख’र पाही चूंचावता

इण बात री ओळूं आसी।

गूंगा नैं चिड़ावता

खेजड़्यां रा खोखा खावता

चालतै गाडै लारै लंबूटता

इण बात री ओळूं आसी।

अेक-दूजै नैं कूटता

सागै-सागै किन्ना उडावता

धोरै माथै बैठ’र

रेत रो घरकोलियो बणावता

बिरखा आवती

सगळा छोरा भेळा होय

खनैड़ा मांय न्हावता।

स्रोत
  • पोथी : राजस्थली ,
  • सिरजक : संदीप पारीक ,
  • संपादक : श्याम महर्षि ,
  • प्रकाशक : राजस्थानी साहित्य-संस्कृति श्रीडूंगरगढ़
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