गोरी गोरी गजबण बणी-ठणी

मुजरौ-मुजरौ खम्मा घणी

जी पै थारौ जादू होज्या

बस ऊंकौ ही राम धणी।

आंख असी कै जाणै काम की कमाण

मूंडै बोलै हथेळ्यां में मेहंदी का मंडाण

संतां की समाधि टूटै, मेनका कौ मान,

भागवान भगवान हो गयौ

तूं सरीखी कोई और नं बणी…।

भांग कौ सो झोलौ अर सांप की महड़

डील में उतार गई मीठौ-मीठौ जहर

अठी उठै ऊठी उठै दरद अठ-पहर,

हंस'र जवानी नै तानौ मार्‌यौ

कांई में निगळग्यौ हीरा की कणी…।

आधौ आधौ चंदण, आधौ आधौ पाणी

गीत की गिणगौर म्हारा छंद की जवानी

थं सूं ही जुड़ी छै सारी प्यास की कहाणी,

मिनखां की तौ बात छोड दै

देवतां पै छा 'गी पाप की पणी…।

नरम नजर की झेल लै जुहार

जस मानेगा थारौ मझ मोट्यार

फेर कद करस्यां- म्हें मनवार,

इक बार हँस दै मोती गिण दै

जनम जनम तक रैवूंगा रिणी…।

स्रोत
  • पोथी : अपरंच राजस्थानी भासा अर साहित्य री तिमाही ,
  • सिरजक : दुर्गादान सिंह गौड़ ,
  • संपादक : गौतम अरोड़ा
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