थारो म्हारो बंधाण
समझ में नीं आवै
बावळ्या...
ईं लेखै कै म्हांनै नीं जोड़्या
जै तूं खुस हो रह्यो छै
म्हंनै अपणार,
थांरी पथवारियां में यूं ई
नीं मंड्या मन में मांडणा
म्हैं कर्या छा पाछला जनम सूं ई
थनै पाबा कै ताईं घणा जतन!
दबाया छा चाकरी में
भगवान का चरण
आंसूवां सूं धोया छा पगल्या
पियो छो चरणामृत घणो,
फेर ई तो देख
मिल्यो तो सरी थूं...
पण दूसरा को होय'र
तरसतो ई रहग्यो मन को मोर
थारा प्रेम का बादळां
अठी-उठी ई बरसग्या
फेर ईं जनम में कर रैयी छूं
मनवार थां सूं मिलबा की
बेदरदी कान्हा सूं।
कर रही छूं
बरत, उपवास, पूजा
नहा रही छूं सावण
भूखी-प्यासी,
हाड़ जमाती ठंड में
नोरता में पाणी पी पी'र करी छै
आराधना जोगणियां माई सूं
मंदिर-मंदिर, थान-थान
तीर्थ-तीर्थ कर रही छूं
धोक विनती,
उल्टो सांथ्यो मांड़'र आई छूं
मन्दिर के पाछै,
आगला जनम
म्हनैं ई दे दीजै हाथ ऊंको
दोनूं जोड़ा सूं आ'र
करेगा सांथ्यो सुलटो,
अर कर देगा सवामणी!
सात जनम काईं
जनमां-जनमां ताईं करूंगी
थारी चाकरी,
अबकै राख ले तूं मन म्हारो
सम्भाळ'र
अतना करायां सूं तो
सात जमारा सफल हो जावै छै
अेक बार में ई
ईं जनम में ई न मिल्या तो
फेर जनम लेगा ईं धरती पर
थनै पाबौ घणो कठिन छै
बावळा तूं काईं जाणै तरसबो?