बूढे बैसाख

अर बाळणजोगै जेठ री बाथां में

बळी-तपी

हरी हुवण री हूंस दाब्यां

सूती धरती

अंग-अंग भीजै

बा रीझै

मुळकै-गावै

जद हरी करै सावण!

स्रोत
  • पोथी : अंवेर ,
  • सिरजक : सांवर दइया ,
  • संपादक : पारस अरोड़ा ,
  • प्रकाशक : राजस्थानी भाषा, साहित्य एवं संस्कृति अकादमी
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