छेकला बांसुरी रा
संभाळ मेल्या है
मांदी आंगळ्यां रै पाण
राख छोडी है अंधेरी दुछेत्ती
मुगट चढी मोरपांख थारी
आस इणी में-
आवैला थूं कान्हा!
पंपोळैला
छेकला-पीड़ बांसुरी री
झड़कावैला धूड़ मुगट री
महकावैला
सौरम मोरपांख री
स्यात थूं!
हां, कान्हा थू!