च्यारूं मेर रे

रोळां मं

फाटो

अकीज, छकीज’र

गूंगरी

भावती अणभावती

एक आद घूँट

गळै तळै उतार लीनी।

गळै तळै उतरतां पाण

गूंग रो घूंट

आपरो आपो

दिखावणो सरू करयो

मन में

मायै में भंयता (कांवळां ज्यूँ)

भावां रा भतूळिया

फेरूं ऊठण बन्द होग्या।

गूंग रो असर होतां पाण

मिनख रो सांतरी रिछाण करण रा

घण करा'क गुण

आपो आप ही

काया में, उपजण लाग ग्या।

गूंग री गिलोयोड़ी माटी पर

पांवडा धरतां पाण

मानखै रा चितराम

आपो आप उघड़ता जावै

काया रै घणै माँयळै पासै

अदीठ गड़ गूमड़ां नै

भाँग-भाँग’र

सरीसा कर नाखै।

काया में

ओपरा अण चाइजता

बैगड़ा रोग

अबै नईं पांगरै।

अड़ावै में अणचाइजती घास

अबै नईं ऊगै।

ऊंडी ओवरी रै

घणै डरावणै अंधारै स्यूं

डरपीजतो मन

गूंग री उजास ले’र

सैचन्नण होसी

बारलो भुलायाँ हो

माँयलो याद आवै

बारलै नै याद राख्याँ

माँयलो हाथ स्यूं जासी

दोन्याँ में

एक ही हाथ आसी।

स्रोत
  • पोथी : जूझती जूण ,
  • सिरजक : मोहम्मद सदीक ,
  • प्रकाशक : सलमा प्रकाशन (बीकानेर) ,
  • संस्करण : प्रथम संस्करण
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