सूरज-चांद-सा पाटां बीच्चै

दळ्या-पीस्या नौ लख तारा

गरणगट करता ढीली होई

'मानी' का अपराध में

झेलती री लोढ्यां की मार

मोटा पीसणा की सजा में

'पंछाती' री बार-बार पेट

पूरा जीवट सूं अजमायौ

घर-धरियाणी का पुणचां को जोर

ऊंका चूड़ां की खणक अर

मीठा-मीठा गीतां की रुणक में

मलाती री अपणी अणहद राग

जीं नै सुण’र पूरौ घर

काढतौ रैयौ मीठी-मीठी नींद

घर-धरियाणी की लेरां जागी

अर लेरां सोई।

भूखी तिसाई रैय’र

भरती री जगती रौ पेट

चालती री चालती री अर

घसती री पण नीं जाणी

थाकबौ, नटबौ, रूसबौ

कोरी अेक घाघरी पैर’र

काढली बगत, मौज में

पण 'बगत' कुणकौ होतौ आयौ छै

जीं कै बिना अेक दिन

काढणौ पड़ै छौ भारी

नीं बळै छौ घर में चूल्हौ

धधक उठै छी पेटां की आग

आज बा जर्जर अेक खूण्यां में पड़ी

खा री छै धूळौ

तकदीरां की मारी

डूबती आंख्यां सूं देखरी छै, अपणी मौत

बापड़ी डोकरी—घट्टी।

स्रोत
  • पोथी : अपरंच ,
  • सिरजक : मुकुट मणिराज ,
  • प्रकाशक : अपरंच प्रकासण
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