कदे-कदास

मनड़ै में सुवाल उठै

कै घर में

इस्यो कांई हुवै?

जिणसूं घर,

घर हुवै।

फेर पडूत्तर

मनड़ो ही देवै,

कै घर में हुवै

घर जिसी बात

अर जिण घर में

नीं हुवै घर जिसी बात,

बो घर,घर नीं हुवै।

स्रोत
  • पोथी : कथेसर ,
  • सिरजक : प्रवीण सुथार ,
  • संपादक : रामस्वरूप किसान
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