नदी की
नीचली तीरां उगी
घांस छूं म्हूं...
न जाणै
कतनो पाणी
खड़ जावै छै नतकै
म्हारा माथा पै
पांव देतो
अर म्हूं
नवा ल्यूं छूं सीस
ऊंका हाव भाव देख’र
देखती रह जाऊं छूं
ठुमकती चाल सूं
जातो देख’र ऊंनै
पण
साता कुण लेबा दै छै
म्हारा जीव नैं
पाणी को उफाण
रुकै कद छै
वा ही चाल
वा ही मठोठ
वा ही ढब
पगां सूं छूंत’र
म्हारा डील नैं
खड़ जावै छै
उफणतो धारवो...
पाणी की लेरां
मंगर-मांछळ्यां
सांप-डींडवा
संदा का संदा
म्हारा माथा पै
पग दे’र
खड़ जावै छै
जाणै कठी-कठी
म्हूं रह जाऊं छूं
म्हारी ठाम पै
ज्यूं की ज्यूं ही
न्हं उखाड़ पावै
उफणता धारवा
न्हं बहा पावै
कटाव करतो पाणी
म्हूं जाणूं छूं
सीस नवाबो
म्हूं जाणूं छूं
झुकबो
नदी की नीचली तीरां उगी
घांस छूं म्हूं!!