मिनख नांव रो जीव

पैल्यां तो अस्यो नीं हो

जस्यो आज है

पैल्यां जीवतो हो

समाज, संस्कृति, सभ्यता,

देस अर परिजनां खातर

पण, आज वो जीवै

कोरो खुद रै वास्तै

अस्यां क्यूं व्हैग्यो है

अेक ‘यक्ष प्रश्न’ है।

पैल्यां मिनख जे

अतरो सुवारथी व्हैतो

तो नीं विकास व्हैतो

नीं तरक्की रा सुर सधता

सगळा जीवता आप-आपरी

खपरेलां में-तबेलां में

पण, वो जीवै हो

वसुधैव कुटुम्बकम रो

मंतर गावतां।

घणो व्हैग्यो है भायला!

थूं तो आपणा नै ही

नीं पिछाणै

कांधा माथै चढ नै

आगै बधणो सीखग्यो है।

भाईड़ा म्हारा,

ओरां सारू भी जीवणो सीख

वांरी पीड़ नैं भी पिछाण

नींतर

पळपळाती चकाचूंध

आपां नैं कठै ले जावैली

बगत री धारा

आपां नैं बेच खावैली।

स्रोत
  • पोथी : राजस्थली ,
  • सिरजक : विनोद सोमानी ‘हंस’ ,
  • संपादक : श्याम महर्षि ,
  • प्रकाशक : राजस्थानी साहित्य-संस्कृति पीठ
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