भावनावां रा हिलोळा

ढावा माथै आवै

अर पाछा बावड़ जावै

पण, कुछेक भाव

लांबी बेळ्यां ताईं

जिनगाणी में काई री दाईं

जम जावै

अजै ताईं आं भावां नैं

कुण अंगेज पायो है।

किणी सूं चावना करनै भी

घिरणा नीं व्है

किणीं सूं चायां भी

हेत नीं व्है

अै मन रा भाव

अणदीठ व्है

कदै तो फेफड़ां रै लारै

हिरदा मांय जम जावै

कदै पांगळा बणनै

थम जावै

किणी सारू पुहप

तो किणी रै वास्तै कांटा

अणजाण्या ही बण जावै।

मन री गत

घणी निराळी है

इण माथै

किणी रो बस कोनी।

स्रोत
  • पोथी : राजस्थली ,
  • सिरजक : विनोद सोमानी ‘हंस’ ,
  • संपादक : श्याम महर्षि ,
  • प्रकाशक : राजस्थानी संस्कृति पीठ राष्ट्रभाषा हिन्दी प्रचार समिति, श्रीडूंगरगढ़
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