म्हारै गांव भांबी रौ जीवण

आधौ रैयगौ है

अकलापौ हांकता-हांकता

पैला

अर इण रौ परवार

पाळ्योडी पांखां ही

बस्ती री

उड़ता आभै मांय

लारलां बरसां

की भाग बदळिया

नुवां सुपनां जागिया

इण कौम नै

आपरै, इणीं कांम मांय

जूण जीवणनै।

काठी कंतळो बतायनै

आंरा पग उचकाया हा

कांई करतौ बापड़ौ?

सगळी आंख्यां में

सूपनां तौ होवै इज

म्हारौ गांव भांबी

माथौ ऊंचौ कर दियौ

कमर सीधी कर दी

अर खुद री पगरखियां रै

फुटपाथां बैठा मोचियां सूं

कारी लगावण रौ

गंठावण रौ

कोड पाळतौ

सहरां हालियो

पण कांई

कद तांई हालै?

घणौ गाज्योड़ी

पांखां नी करी गीली

पंखेरुवा री

पग पावंडा नी भरै

दावणौ लाग्यौ जांण उणरै

आज बस्ती

उणरौ अेक घर नीं है

बस्ती मांय

अलेखू घर है

सगळा न्यारा-न्यारा/आपै-धापै

अर उणरै भी

गांव रै बारै

सांपरतैक अळगौ पड़ियौ टपारौ है

दिनूं-दिन तिणकला होवती

आज उणरौ

कुण है बीरू?

पैलां मिळतौ मणां-मण

अब नी मिळे धांन

खुणचियौ उधार

वौ गुटका भरै है

इण सुपनै रा के

बस्ती रा सगळा बासिंदा है

अेक है

बरोबर है

आज भी उणरौ सवाल

अणबूझ्यौ रैय जावै

वौ हिसाब लगावै

कुण उचकाया पग

कद उचकाया पग

किणने रोऊं जाय

के थूं म्हारौ भार ऊंचाय

बेळा

हिसाब करण री कोनीं

सूरज खा'तौ हालै है

सिंझ्या रा चूल्हा

हिसाब नीं

ब्याळू मांग है...

स्रोत
  • पोथी : अंवेर ,
  • सिरजक : चैनसिंह परिहार ,
  • संपादक : पारस अरोड़ा ,
  • प्रकाशक : राजस्थानी भाषा, साहित्य एवं संस्कृति अकादमी
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