नेनी नणदल रा वीरा, म्हारा हमजोळी।

रंग प्रेम रो घुळाइद्‌यो, जद खेलूं होळी॥

गालां रो गुलाबी रंग, लाली लाल अधरां सूं।

बिन्दीयां सूं कंकू घोळ, नैना सुरमाई नै।

काळो रंग केसां सूं ल्यो, दांतां रो सफेद जाण।

भावां री सुगन्ध, घोळ देऊं मुसकाई नै।

केसर कसूमल तो, अंग सूं मिलाय देऊं।

स्याम रंग प्रेम री मधुर मनुहाई नै।

जोबन जबर अंग, गाय नै बजाई चंग।

‘अनोखा’ आनन्द रंग जावै तरुणाई नै॥

फगुआ होळी पै लायो, रंग भर भोळी।

रंग प्रेम रो घुळाइद्‌यो, जद खेलूं होळी॥

चुम्बन री चोट आड़ी ओट दे हथेळियां री।

आंखियां रा बाण रोकूं, घूंघट री पाळ सूं।

जाओ जी कस्यान, मार मंत्र मुस्कान देऊं॥

वर लेऊं थांनै म्हूं बांहां री वरमाल सूं।

तान पिचकारी वणी काम रा पुजारी।

रंगी चोळी जरतारी, मुख होळी री गुलाल सूं

नार हूं नवेली, मत जाणो पिया गेली।

छैली जोबन रो ज्वार, रोकूं संयम री पाळ सूं॥

मारू मद छकिया जी री सूरत भोळी।

रंग प्रेम रो घुळाइद्‌यो, जद खेलूं होळी॥

स्रोत
  • पोथी : आखर मंडिया मांडणा ,
  • सिरजक : फतहलाल गुर्जर ‘अनोखा’ ,
  • प्रकाशक : राजस्थानी भासा, साहित्य अर संस्कृति अकादमी ,
  • संस्करण : प्रथम संस्करण
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