रेत नीं

अंवेस्यो हो—

धोरां रो हेत।

धोबा भर-भर

भेळी करता बेकळू

भायला सागै

रळ-मिळ'र

रोज बणावता

म्हैल-माळिया।

विगत मांय जावूं

सोधूं—

कीं लाधै कोनी

भींच्योड़ी होवतै थकां

छानै'क

मुट्ठी सूं

निसर जावै रेत।

स्रोत
  • पोथी : मंडाण ,
  • सिरजक : राजेश कुमार व्यास ,
  • संपादक : नीरज दइया ,
  • प्रकाशक : राजस्थानी भाषा, साहित्य एवं संस्कृति अकादमी ,
  • संस्करण : Prtham
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