मन्नै नीं ठा,

प्रेम री परिभाषा कांई है?

पण जद ही मैं देखतो,

म्हारी ढाणीं कन्नैं हुचरिया चाटती,

बी कुतड़ी 'पेमी' नैं,

बा चुंगाती ही च्यार एक नैं,

अर बांने बचावण सारू,

भुसती मिंनखां नैं,

दौड़ती बांरे लारे,

भिड़ ज्याती खुदरै बचियां सारू,

किंणस्यूं ई,

जणै हूं विचारतो,

क्यूं करे ईंया,

पण समझ कोनीं आवती बात,

जद मैं पुछ्यो दादी नैं,

अर् दादी मुळक'र कियो,

भोळिया, तो प्रेम है।

हां! मन्नैं नीं ठा,

प्रेम री परिभाषा कांई है?

पण जद ही मैं देखतो,

म्हारी ढाणीं आळै,

केलिये माथै

रेवणिया दो चिड़े-चिड़ी,

मिनू अर सिनू नैं

हू दोनूं बे हेकठा,

चुगता हा तिणकला,

अर बणायो आळो,

बी आळै में दिया बै,

दो इंडा!

बे दोनूं बैठता हा इंडा कन्नें,

अर करता हा बातां,

खुदरै हुण आळा टाबरां री!

सुणतां चिड़े री मिठी मिठी बातां,

चिड़ी शर्माय जाती,

गदगदे मन सूं, बठै सूं उड परी,

जाय कूदती रेत में,

लारे लारे आवतो चिड़ो,

दोनूं रेत में न्हावता,

खोलता पांख्यां रा पट,

मेह्लता एकदूजे रे टूंचा,

जणै म्हें विचारतो,

क्यूं करे ईंया,

पण समझ कोनीं आवती बात,

जद मैं पुछ्यो दादी नें,

अर् दादी मुळकअर कियो,

भोळिया, तो प्रेम है।

हां! मन्नैं नीं ठा,

प्रेम री परिभाषा कांई है?

पण जद ही मैं देखतो,

जमराज रे पाडे ज्युं, मोटे सिंगा आळी,

म्हाळी बूडकी गाय 'गवरी' नैं

जकी रे झुंम ज्याता हा टिंगर,

कोई पकड़तो सींग,

कोई माथे बैठ ज्यातो,

कोई करतो बींरे घांटी रे खाज,

तो कोई पंपोळतो बिरी थुई,

पण बा तो टाबरां आगे,

ऊबी ही रेवती एक माँ ज्यूं,

अर मन ही मन हरखाती,

कदी कदी आंसूड़ा ढळकाती,

जणै हूं विचारतो,

क्यूं करे ईंया,

पण समझ कोनीं आवती बात,

जद मैं पुछ्यो दादी नें,

अर् दादी मुळकअर कियो,

भोळिया, तो प्रेम है।

हां! मन्नैं नीं ठा,

प्रेम री परिभाषा कांई है!

पण जद ही मैं देखतो,

म्हाळी मिंनकी 'सानिया' नैं,

बा ढोवती खुदरे बचियां नैं,

घर-घर, मुण्डे सूं पकड़,

बींरै काठै दांता री कोमल पकड़,

अचरज में घालती!

मैं जातो बींरै बचियां कनें,

बा घुरती,

दांत काढ मन्नैं डराती!

एकर तो मन्नैं झुल्ड ही लियो,

बिरे झरूंटिये रो निसाण,

हाल मंडुड़ो है,

म्हाळै हाथ माथे,

देखतो बिरी इती रीस,

जणै हूं विचारतो,

क्यूं करे ईंया,

पण समझ कोनीं आवती बात,

जद मैं पुछ्यो दादी नैं,

अर् दादी मुळक'र कियो,

भोळिया, तो प्रेम है।

स्रोत
  • सिरजक : सत्येन्द्र सिंह चारण झोरड़ा ,
  • प्रकाशक : कवि रै हाथां चुणियोड़ी
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