जन्म जन्मान्तरां री कहाणी सूँ
एक राजा र एक राणी नै
काढ़'र
लारै जो बचे अजाणी
पोथ्यां में न्हीं मलै जिणरी विगत
अलोप पण घट-घट रम्यौड़ी
अदीठ पण
मनख री गंध रै सागै बस्योड़ी
जुगां जुगां री ठोकरां झेलती
मे'ल मळिये री धजा न्हीं
गाँव गोठ री धूल
कदै आकासाँ उड़ती
तो कदै पातालाँ पोढ़ती
म्हूँ हर जुग रै
नुंवै सूरज री खिंवता हूँ
म्हूँ जनता हूँ।
म्हैं देख्यो है कौरव पाण्डव जुद्ध
रगताँ रा खेरवाल
रुण्डा रा अडावल
दिसावाँ नै चीरतौ हा-हाकार
धरती नै धीजतो जै-जैकार
अर इण सब रै बीच सूँ
निथरतो गीता रो ग्यांन
कृष्ण रौ विज्ञान
काम न्हीं आयो
म्हारी लटां खेंचता दुशासन रै
म्हूँ निरगन्ध गाँधारी
चेतन जड़ता हूँ
म्हूँ जनता हूँ।
माटी री बेटी
माटी में रुलगी
राम रावण रै वैर री
अणूती सैनाणी
निरदोस सुलगती लंका
हडूमान ने हाथ जोड़ पूछती
म्हारो दोस कांई?
म्हनै क्यूँ जाळो?
हडूमान कांई कैवै-
उणने तो राम रे अभिमान री
पुष्टी करणी ही
आपरे सरीर बल री तुष्टी करणी ही
म्हूँ खुद आग ही
पण मून धार जळगी
म्हूँ इण भारत रे कण कण खणी
महाभारत री अबूझ भासा
लंका री राख में दब्योड़ो
अचपळो सवाल
म्हूँ आदकवि री
अणलिखी कविता हूँ
म्हूँ जनता हूँ।
तुरक पठाण फिरंगी रो पगफेरो
सत्ता रो
सिंघासण रो
अणथक निरत
कतरा ही कतले आम
म्हारी पुतल्याँ में बंद है
घोड़ां री टापां तलै
मसल्योड़ी फसलाँ रा उसाँस
म्हूँ हिवड़े में सहेजूँ हूँ
बिलखता टाबराँ री
चीतकाराँ
कंकू री लोथा ने काटता
दुधारा
कामण्याँ रो उतरतो पाणी
कंचन रा कलश भरै
मद रा छलकता प्याला
ऊँचा ऊँचा गढ़ – कोटाँ रो
मन मोवतो जोबण
एक मूँग री दो फाड़ बीच
ठणी अणबण
कतरी ही पलास्यां र
कतरी ही हलदी घाट्यां
अर कतरा ही खानवाँ रै
रगत रंग्या भाटा सूँ
मूँछ री मरोड़ रो
मोल तो पूछ देखो।
शायद न्हीं बता सके
म्हूँ बताऊँ
इण मरोड़ रै खातर
अरण्या है करोड़ां मुण्ड
फेर भी म्हूँ निपती न्हीं
म्हूँ गरभ गंगा हूँ
सागसात ममता हूँ
म्हूँ जनता हूँ।