गलती उणरी

क’ लोग-बाग उणरी आंख्यां में

क्यूं हेत’र अपणांस री अेक पतळी नंदी निरखता

गलती उणरी

क' सुण उणरी बात

क्यूं ढळ जावती हेम लोगां रै कांनां

क्यूं वनी रा ससिया-हिरण कर लेवता

आपरा कांन ऊभा,

गलती उणरी

क' उणरै बोल्यां

क्यूं खिल जावता पुसप पुसप

क्यूं चिड़कल्यां उणरै साद सूं साद लैय

आपरी चूं चूं उगेरती

सरासर गलती उणरी

क' भाईलोग उणनै

क्यूं वांरै मांयलौ इज अेक गिणता

हळाबोळ गफलत

क’ वौ अैड़ौ क्यूं हौ?

उणनै जैड़ौ व्हैणौ चईजतौ

वैड़ौ नीं व्हैय वैड़ौ क्यूं हौ

क्यूं वौ बायरी'र चांदणी माफक

सगळां नै लागतौ

अेक सिरोळी हेमांणी

गलती उणरी

क' क्यूं उणरा सुकन गिणता मिनख

क्यूं उण धंधाबायरा रै मिल्यां डावी-जीमणी

लोग सरू करता आपरौ धंधौ।

गलती उणरी

क' क्यूं वौ सगळां जैड़ौ व्हैय

सगळां सूं न्यारौ हो।

इण 'क्यूं' माथै पड़ी दीठ

अचाणचक अेक दिन

अेक कवि री

उण सिरजी अेक कविता

इण 'क्यूं' रै आसंग-पासंग

वौ जीवतौ जागतौ पूरमपूर मिनख

कवियां मांय रोड़िज्यां केड़ै

व्हैय'र रैयग्यौ फगत अेक पात्र

अेक ठैर्‌योड़ी छिब

ओपमावां ओपमावां सूं लकदक

अेक ओपमा व्हैग्यौ

सुजांण पाठकां लग पूगतां

वौ कांई सूं कांई व्हैग्यो

वौ व्हैग्यौ अेक सोच्योड़ौ’र

सिणगार्‌योड़ौ साच

इण साच नै सुण’र

पाछौ सोचियां उण लग नीं पूगीजै

कविता रा बीज सूं

उण गत रौ रूंख बण नीं ऊगीजै

कोयनी आपांरै टैम मांय खोट

गलती उणरी

क’वौ वैड़ौ क्यूं हौ

नीं व्हैवा जैड़ौ क्यूं हौ?

स्रोत
  • पोथी : अंवेर ,
  • सिरजक : चन्द्रप्रकास देवल ,
  • संपादक : पारस अरोड़ा ,
  • प्रकाशक : राजस्थानी भाषा, साहित्य एवं संस्कृति अकादमी, बीकानेर ,
  • संस्करण : पहला संस्करण
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