डाल्यां माथै

खिलियोड़ा फूल

उण री सुगन्ध

बैठपरी पून रै रथ माथै,

पसरै चारूं मेर।

कोई नातो कोनी

सुगन्ध अर म्हारै मनड़ै रो

पून म्हारी मदद कोनी कर सकै

वजै—

म्हैं चिंतावां सू झड़ीज्योड़ो हूं

अंधारी खांया में—

सूनो पड्यो हूं,

जठै पून रो जावणौ

मना है।

स्रोत
  • पोथी : बिणजारो ,
  • सिरजक : यादवेन्द्र शर्मा 'चन्द्र' ,
  • संपादक : नागराज शर्मा ,
  • प्रकाशक : बिणजारो प्रकाशक पिलानी (राज.) ,
  • संस्करण : 26
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