ऊगतै सूरज रै साथै

फूलै मन री धरती,

भांत भांत रै भावां रा फूल,

गुलाबी पीळा अर राता।

ज्यूं ज्यूं तपै भाण चढे आभै,

बदळतो जावै फूला रो रंग।

चटख ऊगता भाव,

सिंज्या ताणी झेल जूण रो

तावड़ो, पड़ज्यै फीका।

रात रा सुपना देवै खाद,

भावां सारु, अगलै दिन,

ऊगतै सूरज साथै फेरु दिखै,

चटख रंग भावां रा,

मन री मुळकती धरती पर।

स्रोत
  • सिरजक : प्रहलादराय पारीक ,
  • प्रकाशक : कवि रै हाथां चुणियोड़ी
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