सियाळै री ठण्डी रात

पाणत कर’र

पाळी फसलां

घणी दोरी

गीगला ज्यूं

पण कदै'ई

दावौ लाग’र

या भौपारी कानी सूं

भर आवै आंख्यां

ज्यूं गीगला नै

निकाळो

निगळ ज्यावै।

स्रोत
  • पोथी : थार सप्तक (दूजो सप्तक) ,
  • सिरजक : राजेन्द्र सिंह चारण ,
  • संपादक : ओम पुरोहित ‘कागद’ ,
  • प्रकाशक : बोधि प्रकाशन
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