करसणियै बाप री

कन्यावळ-सी भूख

बाखोटिया- बिछड़ियां

हिरणी री हूक

जिसी ही

पवीतर है

इण धरती री कूख।

जुग जंतर रा आंतरां में

ही अपणास छोड जाऊं

तौ मुंआं ही मुखातर पाऊं

जोयोड़ी जोत रौ कांई जोवणौ है

होवतै काम रो काई होवणौ है

अणु नै उधेड़णौ सोरौ है

पण मिनख नै समझावणौ दोरौ है।

हे मन रा करणहार

ही करण ने

च्यार दिन फेरूं मांगूं।

स्रोत
  • पोथी : जातरा अर पड़ाव ,
  • सिरजक : नारायण सिंह भाटी ,
  • संपादक : नंद भारद्वाज ,
  • प्रकाशक : साहित्य अकादेमी
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