लुगाई, सूखै कूवै मांय बार-बार
बाल्टी घाल'र पाणी काढ़ण रो
जतन करती ही।
किसाण
पड़तल खेत मांय बार-बार
हळ चलावतौ हो कै
सा कठै खेत उपजाऊ होय जावै।
आदमी,
बार-बार आपरी छतरी खोलतो हो कै,
कठै छांट्यां नीं होवण लाग जावै।
बूढे़ डोकरै रा पग कबर मांय लटक्या हा
पण सीखतो वो वरणमाळा हो।
उण टाबर री उमर
पढ़ण-लिखण
खेलण-कूदण री ही
पण बण वो आदमी रैयो हो।