रसां रो सरदार मतीरो
मरुधर रो लम्बरदार मतीरो।
थारी है अजब कहाणी
ऊपरस्यूं है तूं लूंठो करड़ो
भीतर है निरमळ पाणी
खावण नै इहै मीठो बत्तीरो!
थारी सीफ़ळ ऊपर
धोरी जद लेवै सबड़का
आम-अंगूर-केळा-संतरा रै
मन में लागै धड़का
मरुधर नैं तूं बरदान प्रकृति रो
मरुधर रो लम्बरदार मतीरो!
धोरी थारा सेकै बीज
सूकै मेवां रै उठै खीज
गुड़ मिला जद खावां तन्नै
फिक्की लागै दुनियां री सगळी चीज
मेवां रो भरतार मतीरो
मरुधर रो लम्बरदार मतीरो!