रेत री नदी रो

दरियाई घोड़ो

खावण नै फूस-पात

पाणी रो तोड़ो

चालै तो मजलां

ढोवै सा ढाणी

काळ् पड़्यां

अबकाळै

आणी ना जाणी !

स्रोत
  • पोथी : जागती जोत ,
  • सिरजक : शारदा कृष्ण ,
  • संपादक : डॉ. भगवतीलाल व्यास ,
  • प्रकाशक : राजस्थान साहित्य एवं संस्कृति अकादमी, बीकानेर
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