आपा धापी इब कै बाकी, पांख पखेरूं मून

चूल्यो चाकी करै न्योरता, च्यारूं कानी सून

इबकै छोरी नै परणास्यां, पण म्हारै में खोटी बणगी

अबकालै भी काल आपड़यो, सोची समझी बातां ढैगी

डांगर ढोर अर मिनख लखीणा, बिन पाणी रै मरै तिसाया

पाणी बैठ्यो डूंगो तल में, भूख भयंकर नाच दिखाया

किसनो काको पड्यो खाट में, धापां दादी आंधी होगी

टाबरिया भूखा कुरलावैं, भैंस बिदक धारां सूं नटगी

सोनै बरकी फसल उगाती, बा धरती भी बणी बांझड़ी

च्यारूं मेर तरेडां पड़गी, बुढै की सी बणीं चामड़ी

कोयल निज रा गीत भूलगी, कागो कांव कांव कर रोवै

मोर भूलगो नाच निरालो, ऊंट आपरो धीरज खोवै

सुपना तो म्हे खूब सजाया, सुरग लोक री करी कल्पना

पण बादलिया बैर निकाल्यो, सूखो पड़गो, मरी कल्पना

इबकालै भी काल भयंकर, म्हारै चौकस गैल पड्यो है

दोय काल मुस्कल सूं बीत्या, और तीसरो त्यार खडयो है

भूखी काया फिरै बिलखती, रोजगार रो चाल्यो तोड़ो

रपिये री कीमत गिरणै सूं, मैंगाई रो लाग्यो कोड़ो

लूण मीरच री बधी कीमतां, मिनख बिचारो आकल बाकल

रात दिनां चिंत्या करणै सूं सूक सूक कर बणगो थाकल

भावां रा बंधन सै ढीला, सूखा सारा ताल तलाई

निज नैनां रो नीर सूकगो, रुलती हांडै आज भलाई।

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