ए हैंडो!
नगारं, तण तारियो ढोल
नैं शंख वगाड़ता ज़ई ने हाद पाड़ो
गाम भेगू करावो चौराया माते
सब मली नै करं
गोधूलि वेला मएं चिन्तन-
कैम दुःखी थई गई प्रजा
त्राहि-त्राहि करी उठ्य हैं लोग
हाहाकार मची ग्यो है
चारे आड़ी अकाल ना नाम नो।
कैक तो पाणी एटलू के
तणाई ज़ाएं मनखं नैं सौपं
कैक पाणी वगर ना हवतंग हांदा!
ज़मीं माता तपी गई
पैरयू बीज़ हुकाई ग्यू मएं नू मएं
बीज़ू तो ठीक
पण चारे आड़ी हुकू स हुकू ज़ोई
म्हारा मन नी स्याही हुकावा करै है
कोरा कागद मातै
आ कलम! टपा-टप आँउअं पाड़ये
पसै कौ नखै-
कैम नती लखतो आज़काल
श्रावणियां झूला?
ए खबर पड़ै कै!
हाँज पड़ी गई-
थई ग्यो दीवा-बत्ती नो टेम
रुकमो, लखमो नै ललियो
'रेतीलं घरं' बणावी ढगलिये वखेरी
हवणं स आपड़ै-आपडै़ घरै पूग्या हैं
बस्ती ना नान-नाना बालूड़ा
आवरे वर्षात् आवरे वरषात
कही कही नै थाक्या
गोवार ना भरोसे सोड्य भूखं-तरसयं लाटं
भटकी-भटकावी ने पासं आवी ग्यं हैं
कोड़ मएं बंदाई ज़ावा हारु
म्हारा मन मएं उंडो पड्यो विचार
आटला दाड़ा जैम-तैम काड्या अगाड़ी हरते थाए
जो नी झीकणों मैंबाबो
तो उनी उनी रोटली
नै कारेलं नू शाक हरतै खवाए!