तपती ला में ठंडी छियां है मायत,

घर री नींव मांय धरपेड़ी ईंट है मायत,

उफणतै दूध में ठंडो छांटो है मायत

छिड़ेड़ी राड़ मांय

खिंच्योड़ी बाड़ है मायत

आभै जियां ऊंचा अर

कुवै जियां ऊंडा है मायत

सूखै माथै बिरखा सो हैत है मायत

भरी बखारी रौ धान है मायत,

आँगण मांय बिन मूरत रो थान है मायत

आभै रो तो ठा नीं

पण धरती रौ भगवान है मायत!

स्रोत
  • सिरजक : पवन 'अनाम' ,
  • प्रकाशक : कवि रै हाथां चुणियोड़ी
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