जीवन कै है

सीखां बां किरसा सूं,

जिका खपण लाग रैया है

खेतां मांय सइका सूं,

इण आस सागै

कै हुवे'ली भरपूर फसल अबकाळे।

उतार गै करजो सारो

बणवा स्यूं पाजेब बेटी री,

ड्रेस बेटे री,

झुमका जोड़ायत रा।

इण बात सूं अणजाण

कै सारी फसल जावैली

करजैई रै ब्याज मांय

हरे'क बार

सारी फसल लुटा'र

घरवाळा नै

नुंवा सुपना दिखा'र

परचागै पुचकार गै‌।

कै अबके नहीं...

आगली बार

करुं'ला सारो कीं

लाऊं'ला पाजेब, ड्रेस, झुमका।

चाल पड़ै

उठा'र हळ

खेतां रै मारग,

बार बार,

हरै'क बार।

स्रोत
  • सिरजक : रामकुमार भाम्भू ,
  • प्रकाशक : कवि रै हाथां चुणियोड़ी
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