लार’ले साल मांय

बणायौ छपरौ,

सूखेड़ा खींपड़ा सूं,

बापू जचाया बड़ी

तजबीज सूं,

जाणै मोटी हवेली रै हीरा मोती जड़ रया हौ।

माँ बोली म्हरै बापू सूं—

“बस अबकी बार री ही तो बात है”

माँ, बापू दोनूं देखण लाग्या म्हरै कानीं,

म्हूँ समझ गयौ बांरै मन री बात

छपरौ अब पाछौ खींपड़ा री

मांग सारु हड़ताल करण लाग्यौ,

छोटो सो टापरौ

घर होवण री बाट जोय रियौ है।

बापू जचागै आज

फेरूँ कीं ईंटा,

बणा दियौ खाली नांव रौ रसोईघर,

माँ रै हाथा सूं पड़तौ लोई

बापू जी रौ फाट्योड़ो कुड़तौ

पूछ लेवै है बीं सवाल रौ जवाब

जीण सारूं माँ, बापू चुप हा।

दिन उगता ही बापू चल्या जावै है

आथण करण रै लेइ

अर माँ खेत रै जुद्ध मांय उत्तर जावै

म्हारै सारु लड़न रै लेइ।

म्हूँ पढ़ लेऊँ हूँ दो पेज दूजा

बां उणियारां नै याद करगै।

स्रोत
  • सिरजक : पवन 'अनाम' ,
  • प्रकाशक : कवि रै हाथां चुणियोड़ी
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