पुराणै जमानै में

छोरी रौ ब्यांव

छोटी उमर

अनै बडै़ कुनबै में

कर्या करता

क्यूं कै उण घड़ी

छोरी रै जींवतै रैवण री

चिंत्या होंवती

बड़ै कुनबै री अैठ खाय’र

बा जीवती रै सकसी

सोच हौ

अर सोच तो बी हौ के

छोरी तौ रामजी री गाय है

खूंटौ छोड़’र कठै जासी।

पण आज

छोरी सारू देखीजै

छोटौ घरबार

छोटौ कुनबौ

ईं खोज में भलांई

उमर खूट जावै

अर जवानी छूट जावै।

आज सुवाल

मन रा नीं

धन रा है

छोरी रै धणियाप रा

झूठी मरजाद रा

स्यान रा

आंट रा।

स्रोत
  • पोथी : आंगणै सूं आभौ ,
  • सिरजक : सुशीला ढाका ,
  • संपादक : शारदा कृष्ण ,
  • प्रकाशक : उषा पब्लिशिंग हाउस ,
  • संस्करण : प्रथम
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