अंधारै सूं

अग्यान सूं

घिरणा अर

कूड़ सूं

लड़त है लूंठी...

थूं थारै दीया नै

राखजै संभाळ-

दीया दीठ रा!

दीया साच रा!!

दीया नेह रा!!!

देखी..!

निजरां नी भीजै

दीया नीं गळगळीजै

लड़त में...

स्सो कीं हुवैला

पण खा सौगन

हार नीं मानैलो

लड़त रा नैम निभावैलो

मिरत्यू री रेख तांई

करैलो भिड़ंत

हुवैली जीत थारी

म्हैं दूं थनै

म्हारो विसवास।

स्रोत
  • पोथी : कवि रै हाथां चुनियोड़ी ,
  • सिरजक : संजय पुरोहित
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