जे आपरै

भोगै खावै तो

देखो हमेस दो सूं बेसी सुपनां

क्यूंकै—

एक सुपनो तो टूटज्या है

पसवाड़ा रै मांय

अनै दूजो

बारियै रै हेलै सूं।

जे'कर आप धार’ई ल्यो

कै किणी नै चावणौ है

तो आपनै राखणी चाईजै

आंख्यां री

दो सूं बेसी जोड़ी

क्यूंकै

एक तो पथरा जावै उडीक मांय

अनै दूजी रै अवण आजावै

दो जूण रो आटो।

स्रोत
  • पोथी : जागती जोत काव्यांक, अंक - 4 जुलाई 1998 ,
  • सिरजक : कृष्ण बृहस्पति ,
  • संपादक : भगवतीलाल व्यास ,
  • प्रकाशक : राजस्थानी भाषा, साहित्य एवं संस्कृति अकादमी
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