टाबर देखै-

नीं घूमै धरती

पण

किताब तो कैवै!

टाबर देखै-

नीं है धरती गोळ

पण

किताब तो कैवै।

टाबर देखै-

किताब मांय

इंदरधनख रा सातूं रंग...

पण

बां मांय कठैई नीं है काळो!

टाबर देखै-

काळो रंग

पण

किताब तो नीं कैवै!

टाबर देखै-

कठैई कीं काळो है,

कठैई कीं गोळ है,

कठैई कीं नीं घूमै...

-न धरती

-न डूंगर

-न रूंख!

चायै कोई घूमै-नीं-घूमै

घूमण लागै

टाबर रो सिर

पण

किताब तो नीं कैवै!

स्रोत
  • सिरजक : मदन सैनी ,
  • प्रकाशक : कवि रै हाथां चुणियोड़ी
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