थारै लारै, खूंआं रैखनै

कोई खुदरा सबदां सूं

थारी दीठ बांध रह्यौ है

थारै लारै डीलबिहूंण

आतमा बिहूंण।

सपनै में धूएं सूं भर्‌योड़ी अवाज़

जिकी टूट जावै।

खुदरा सबदां सूं, झूंठा झरोखां सूं।

आंधौ बण’र मौत रै सागै चालतौ

सोनै री सुरंग सूं

जिण में काळा काच जड़्‌योड़ा है

थूं अेक गळी में पूगै।

गळी में थूं ख़ुद ही

थारी मौत सूं मिळै।

अर कोई थारै लारै खूंआ रै खनै

जठै कठै थूं जावै।

स्रोत
  • पोथी : परंपरा ,
  • सिरजक : रफ़ाइल अलबर्ती ,
  • संपादक : नारायण सिंह भाटी ,
  • प्रकाशक : राजस्थांनी सोध संस्थान चौपासणी
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