धीरज न इत्तौ धारै हियौ
कै आसरा थारौ जस दरसाऊं प्रबंध मांही,
बंधियौ न किणी बंधेज मन-पत
सौ बंधै किम अमीणा छंद मांही?
दोयण कुण थारा दुर्गदास?
दोयण मां-भोम रा तुझ दोयण
न हिंदुआं हेत हय पाड़िया,
न मुगल बाढवा बाढाळी झाली,
करम-खेतरा मांझी आसोत—
थारी कीरत माणसां पंथ हाली।
काळी घणघोर घटा ऊमटी—
अचांणी तेग-वेग सूं विपदची
धमकिया धू प्राची
औरंग चौरंग घटा ओसरी,
अटा चढ देखियौ नर नारियां
काळी छबकाळी कांठळ विस चूंवणी
कांकड़ कमी।
मां भू भरिया दृग
हिये कंपकंपी
रूं-रूं विस छांवळ हहरियौ
अरडायौ आडावळौ
लूणी सिथळ गात थई
कुरळाया कायर मोर
सरणाटौ चहुं और छायो।
जदै बण आंधी उचटियौ मरू-भोमरा,
आसरे सांस अेक भेळ कीन्हौ
पीन्हौ विस जेण कोड घणै
मां भोम रै उर इमरत दीन्हौ॥
तिण दिन सूं दुर्ग बण दुर्गदास
अड़ियौ आडावळै आंटीलौ,
चढि्यौ न जेण रंग औरंग रंग—
रंग है वां तुरंगा जेण थूं चढ्यौ।
पतै रो चेटक जग चावौ
थें किता चेटक छिटकाया
केण पतौ?
न जाणूं रूप-रंग ज्यांरौ
त्यांरी खुरताळन धम-धमी
अेथ सांभळूं।
बखत रा बखतरां चीरणी
अस-हींस आभड़ै करण-पटां
सोही संगीत सांचौ देस प्रेम चौ
जुगां नगारां बाजणौ॥
भोगिया छप्पन भोग
बिखै रा थें
छप्पन भाखरां
खाई खमखारियां भुज तोलणां
रीस पीणां।
न पूरौ पय पीधौ
मेघ बदळै रा वाद बावळा
थे पाई घड़-फुलवाड़ी
सैल धारां॥
अस रा असवार ऊजळा
रह्यौ ऊजळे वागां
ऊजळी खागां
ऊजळै मनां
राखियौ खत ऊजळौ
पण असल रंगरेज आसरा
थें रंगियो कसूंबल धरा-पोमचौ
बिनां कर रांगियां॥
थें काढिया अबखा ऊनाळा-
उकळतै धोरां,
बळबळतै भाखरां,
कळवळतं नीरां,
प्रचंड लूआं अंग प्रखाळीजियौ।
उकळियौ रगत रंग राचणौ
हीयौ न अकळियौ
म्रग प्यास रा पंथ बांधणा
बांधिया जेथ बंधिया
सर आसरा॥
सरणाती सियाळू रातां
सिहरतै रूखां
हाली हमीरहठ डकरेल डांफरां,
धारा चौ नीर धूजतौ पोढियौ,
पड़तै पाळै केहरी खोह सूता,
करणौत हिये-खोह प्रण जागै,
चंचळां पांखरां नीर चुवै॥
केई—
रस-भींजी
सुहांणी
सुरंग रैणां
आई छाई गई रसा।
पवनियौ प्रीतम संदेस लियां,
नाजुकड़ी नींद रौ पांण गह्यां,
बरसां डूंगरां बनां भटकियौ,
थूं न भेटीजियौ।
विहांणै विहांणै काग उडाया सही कांमणी
पण भुज फड़कणां
तुझ हियो न फड़कियौ॥
प्रण पाळ थू ऊंचौ प्रिथीपाळ सूं
थारौ अस ऊंचौ असमांन सूं
थूं और असवारां नित ऊंचौ,
पण सही जाणजे
आसरा इळा में
थांसूं ही थारौ जस ऊंचौ॥