देस भर री यूनिवर्सिटीज में

आं दिनां

हांडता फिरै सांड

बात-बेबात दड़ूकता

कोई अचूम्भो कोनी करै

पण एक यूनिवर्सिटी में अचाणचक जाणै कठीनै सूं

आय पूगी है

एक सां'ड

अर खुल्लमखुल्ला चरती फिरै

अेकली नीं है बा

साथै लियां फिरै है

आपरी छव-सात म्हीना री

टोडारूं नैं।

बीं रै नाक में

नां तो गिरबाण है

नां मो'री

हां, नाक टूटेड़ो अवस है

नां दावणो है

नां बांधेड़ो है गोडो

पण मो'रै अर दावणै रा निसान जरूर है

उणरी देह माथै

देस रै सैं सूं लूंठै स्टेट री

राजधानी री यूनिवर्सिटी में

घूमै है बा निरायंत आज़ाद

अर 'एजुकेटेड' लोग

देखै है बीं नैं

अचूंभै सूं

खींचै फोटूआं

अर सोचै

कींकर आई हुवैला बा यूनिवर्सिटी में

बै जाणै कै

यूनिवर्सिटी में घूम सकै

गा, सांड अर गंडक

चील, बाज, कागला, गिरजड़ा

जोंक, चींचड़ भी घूमता दीसै

पण सां'ड रो ईंयां टोडारू लियां घूमणो मामूली नीं है

बिना दावणै

बिना गिरबाण

बिना मो'रै

बिना मो'री

बिना कोई

धणी धोरी

कींकर घूम सकै

यूनिवर्सिटी में सां'ड

केई जाणैकार

आपरी अकल रा घोड़ा खोलै

अर बतावै

कै हुय सके बिगड़ैल, मट्ठी

अर जिद्दी डाग

कचरै सूं मूंगी

इण सारु कर दी हुवैला

घर-बदर

अब पड़ी फिरै

मो'रो काडेड़ी

यूनिवर्सिटी में फिरती सां'ड

किणी सारू

अजूबो है

अर किणी सारू अज़ाब

पण म्हनै लागै

फगत अेक लुगाई है

जकी तुड़ाय आई है आपरा बंध

स्यात सोच नै

कै यूनिवर्सिटी समझ सकै

उण रो दर्द

अर सूंप सकै है बीं नैं

अर बीं री बेटी नैं

एक पूरी दुनिया।

स्रोत
  • सिरजक : जगदीश गिरी ,
  • प्रकाशक : कवि रै हाथां चुणियोड़ी
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