आंसूडा पी डाल्या?
तो
रात’र दिन बढ़ता
विचारां रा घाव
खाली कागद तांई फैलग्यां
ओल्यां में छिपग्या
लै मांय रमग्या
होळे-होळे
दीमकां री
खुराक बणग्या।
देख'र थिर रैग्यो
अचाणचक
हिवडै रा तार हिलग्या
भटकते ने गेलौ मिलग्यो
हीमत अर आतम बिसवास सूं
ऊबड़-खाबड़ रस्तै माथै
अबै
देख रह्यो हूं
सूखे रूंखा माथै
मधुमास री मुळक
पग-पग माथै
फूलां री मैक, अर
उड़ती पराग रै कण कण मांय
उभरती तसबीर।