छोरा

घर रा

दिवला होवै

तो छोरियां

होवै बाट

दोन्यां नै राख्यां बराबर

सैंचण होवै घर

फेर पसरै ठाट ठाट

च्यानणो दिवलो करै

लोगड़ा भरमै क्यूं धरै

बिना बाट

कदैई नीं देख्यो

दिवलै नैं करता च्यानणो।

दिवलै अर बाट री

गाथा नैं समझणो पड़सी

दिवलै रै साथै,

बाट नैं भी

अरथावणो पड़सी।

स्रोत
  • पोथी : मंडाण ,
  • सिरजक : अंकिता पुरोहित ,
  • संपादक : नीरज दइया ,
  • प्रकाशक : राजस्थानी भाषा, साहित्य एवं संस्कृति अकादमी ,
  • संस्करण : Prtham
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