मुगत करै

थारी औगत

आखती-पाखती री

सगळी ही अबखायां सूं

बेकळू मांय न्हावै मन

धरती आभो बण जावै

अर

धोरा समदर।

स्रोत
  • पोथी : राजस्थली ,
  • सिरजक : राजेश व्यास ,
  • प्रकाशक : राष्ट्रभाषा हिन्दी प्रचार समिति श्रीडूंगरगढ
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