पाड़ौस्यां री ऊंची हेली रै कारण

म्हानै ठा' है

सियाळै में

ऊगतै सुहावणै सूरज री तिड़की

कोनी पूगै

पाळै सूं धूजतै

म्हारलै कच्चै आंगणै तांई

पण फेर

म्हारो ओळमो जायज कोनी

क्यूंकै जेठ-साढ रै महीनै

तपतै तावड़ै सूं तो

फगत बा ही राखै ओट

चिलकतै दोपारां तांई

धरम री बहन बण'र।

स्रोत
  • पोथी : कवि रै हाथां चुणियोड़ी ,
  • सिरजक : देवीलाल महिया ,
  • प्रकाशक : कवि रै हाथां चुणियोड़ी
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