बिणजारौ अर बिणजारी

वैपारी जातरू है,

आवता-जावता आपरी ऊंटगाडी

रै साथै हर बार रुकै धोरे माथै,

इण पड़ाव ऊं चालता वै हर

बार ढींगरां माथै छोड जावै

जूनौ धणक अर पछेवड़ौ,

म्हूँ सोचूं के

हमें पांतर जाऊं उणरी अवळूआं नै,

के औचक निजर चढ़ जावै

उण टीलै माथै जठै

बिणजारै रै हेतगंध ऊं भरयोड़ी दीसै

बिणजारी री धणक।

स्रोत
  • सिरजक : खेतदान ,
  • प्रकाशक : कवि रै हाथां चुणियोड़ी
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