नार

तू जग-जामण निस्काम।

पति

थारो जायो जाम।

फैलज्या

गोदीभर संसार

अनै दे

मनचाया संस्कार।

अबै तूं

किण सूं रोपै राड़

भोग

निज रा कर् ‌या बिगाड़।

बोल

तूं किण सूं करै पुकार

कूण सूं मांगै है इधकार

काढ दे घर रै चारूं-मेर

एक

ढाई आखर री कार।

मिलैला सुख, सम्पत, सै’वास

राख

इण टूणै मैं बिस्वास।

स्रोत
  • पोथी : जागती जोत अगस्त 2005 ,
  • सिरजक : संतोष मायामोहन ,
  • संपादक : ओम पुरोहित ‘कागद’ ,
  • प्रकाशक : राजस्थानी भाषा, साहित्य एवं संस्कृति अकादमी, बीकानेर
जुड़्योड़ा विसै