जेब

जद फाट्योड़ी हुवै

तद उण मांय सूं

कीं पड़णै रौ खतरौ

लगौलग

बण्योड़ौ रैया करै।

पचास बरसां पैली

जद देस नै आजादी मिळी

तद

म्हारी जेब फाट्योड़ी ही।

स्रोत
  • पोथी : जागती जोत काव्यांक, अंक - 4 जुलाई 1998 ,
  • सिरजक : पारस अरोड़ा ,
  • संपादक : भगवतीलाल व्यास ,
  • प्रकाशक : राजस्थानी भाषा, साहित्य एवं संस्कृति अकादमी
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