खूंटगी पीढ़ियां, वा ई
कथा थारी, कथा म्हारी!
जळमियो एक दिन
नैं अब मरण
अख्तयार कोनी है।
घड़ै कांई तपा
कै गाळ नैं
वो चतर सोनी है!
ऊकळै है हियो,
नैं दाझ री है जिन्दगी सारी।
खूटगी पीढ़ियाँ, वा ई
कथा थारी, कथा म्हारी!
उमठियो एक दिन
नैं बादळ
जद बरसवा लागो।
छिनी-सी
भोनगी धरती
छिनो-सो नेह जद जाग्यो!
उणीं पल लै उडी
अध-बरसियै नैं आंधियां खारी!
खूटगी पीढ़ियां, वा ई
कथा थारी, कथा म्हारी!
रूप कीं विगसियो-बधियो
ड़ाळियां में फळी कूंपळ!
गन्ध सूं
हेत-हिळणै री
हवा री हूंस ही हेजल!
पलक में एक कुमलाणी
कवा ए आंट यूं काढ़ी
खूटगी पीढ़ियां, वा ई
कथा थारी, कथा म्हारी!
कथा आ चालसी
म्है चालसां
कोई रुकै कोनी!
हियै रो वासदे
म्हांरो
धुकैला, पण बुझै कोनी।
किणी दिन चेतसी आ आग
फांदै सैंग लाचारी।
पलटसी अवस कर नैं आ
कथा थारी, कथा म्हारी!
कठा तक चालसी वा ई
कथा थारी, कथा म्हारी!