गांव री सगळी गळ्यां में

निगै आवै ही आज फूटरी-फूटरी चिड़कल्यां

इनलै घर सूं निसरती बिनलै घर बड़ती

मासूम मूंढै री चमक

अर पै'रावै री दमक

आखै मिनखपणैं अर आप आपरै कडूंबै नै

दरसावै ही फगत अेक ही बात

कै आखै जिया-जूण री आवभगत

अर माणस री बांध्यौड़ी रीति-रिवाजां

हेठी दब-दब'र

थां जिस्यां री पाळ-खोट करण वाळी

आं चिड़कल्यां नै

थां कदै करण ही नीं दी

आपरै अस्तित्व माथै गौर

नींतर बारह महिनां, हरमेस

इंयां ही निगै आवा'र

अे चिड़कल्यां

जिकी भूल्यै-भटक्यै

कदै-कदास ही करै है

आपरै अस्तित्व माथै गौर

तीज-तिंवार रै भानै

का अेड़ी गौर रै भानै।

स्रोत
  • पोथी : कवि रै हाथां चुणियोड़ी ,
  • सिरजक : देवीलाल महिया ,
  • प्रकाशक : कवि रै हाथां चुणियोड़ी
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