मामा कह्वै थारो मान बड़ेलो,
बाबा कह्वै थारो बाग।
काका कह्वै तो काळ कटै,
तू चावै जे ही मांग।
थारी तोतली बोल्यां पै मर-मर जीऊं हजारां बार।
थारा दो दांतां पै वारूं सौ-सौ बीघा का सौ बाढ़॥
चाल धरा पै रसक-रसक,अड़ जाबा दै थोड़ी-सी रज।
आंगण रोपी नीमड़ी की लारां बदजा गज पै गज।
बड़ो हो'र बण बड़ो मनख तू,मनखपणां की बणजे धज।
रामकृष्ण गौतम गांधी-सो कै बणजाजे रामानुज।
गांव -गरियाळा पाड़ा का जद करता जय-जयकार।
थारा दो दांतां पै

बूढ़ाती दादी सोचै सूना की सीढ़्यां चढल्यूं।
सातूं पीढ्यां ऐक-ऐक बैकुण्ठां जाती पढल्यूं।
दिया सूं दियो जपग्यो तो राम नाम ई रटल्यूं।
देख मुळकतो मूंहडो थारो दोई भुजा मं भरल्यूं।
कमर कणकती कड़ी-कडूल्या झुगल्या झालर दार।
थारा दो दांतां पै वारूं

जद बी आली होती गोदी प्रयागराज मं न्हाती।
दे'र मचोळो नंदरा गाती तीन लोक बिसराती।
गास गळै अटकै रोवै तू हांसै तो मोती पाती।
दूध-पूत का घणां चावला भागूं खाती-खाती।
काजळ घाल दीठणों देऊं हो जारै हूस्यार।
थारा दो दांतां पै वारूं

कर-कर हाथां गगन बतावै कदी चांद तारां नै।
लावण लूमै रोळ मचावै कदी दूध पीबा नै।
नन्हा पांव घूघरा बाजै गर-गर ऊबो होबा नै।
आछ्यो नाच नचायो दन-भर बना बात की बातां नै।
पल-पल मं सुख ल्यूं कांवड़-सो,तू सरवण कुमार।
थारा दो दांतां पै वारूं सौ-सौ बीघा का सौ बाढ़॥

स्रोत
  • सिरजक : विष्णु विश्वास ,
  • प्रकाशक : कवि रै हाथां चुणियोड़ी
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