'पापा!

थे कांई करौ?'

'लाडली !

म्हैं पोथी बांचूं।'

'पापा !

हरमेस पोथी बांचता रैवौ ?

'हां लाडली।'

'पापा, कदैई म्हनै बांच लिया करौ !'

देखूं

लाडली रै चैरै कांनी

जिणरी थिर आंख्यां

म्हें मून

लाडली मुळकै

देखतौ रैयग्यौ

बिसरग्यौ सौ- कीं, कै कांई बांच्यौ ?

अजै बांचणौ है सो-कीं।

स्रोत
  • पोथी : थारी मुळक म्हारी कविता ,
  • सिरजक : गौरी शंकर निम्मीवाल ,
  • प्रकाशक : एकता प्रकाशन
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