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दरखत
संजू श्रीमाली
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दरखत-
हुवै
आसरो
नाजाणै
कितरै
जीवां
रो
बां
जीवां
नै
बेआसरै
करनै
मिनख
बणावै
आज
खुद
रो
आसरो!
स्रोत
पोथी
: इक्कीसवीं सदी री राजस्थानी कविता
,
सिरजक
: संजू श्रीमाली
,
संपादक
: मंगत बादल
,
प्रकाशक
: साहित्य अकादेमी
,
संस्करण
: प्रथम संस्करण
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