खोल मती चौबारा

दरद रा खोल मती चौबारा

तूं कांई मिनख कंवळ कुम्हळावै

आंसूं रा अंबार लगावै

घर-घर में संताप पसरिया

पियै गुटकिया खारा

दरद रा खोल मती चौबारा।

कितरां जीव फळी नहीं फाटी

आंगण अकन कुंआरा

कचरघांण कितरा दुख पावै

बंध्या पाप रा भारा

दरद रा खोल मती चौबारा।

संत हुवै तो प्रभु पहचाणै

पीड़ पराई बिरलौ जाणै

अेक सांच सौ झूठा हारै

कर जग में विस्तारा

दरद रा खोल मती चौबारा

पण स्वारथ संसार रसीज्यौ

आंधा हुयग्या सारा

मात पिता भाई अर बंधु

तकता फिरै किनारा

दरद रा खोल मती चौबारा।

न्याव धरम परळै में डूबौ

फिरी पाप री धारा

माणस हंदौ प्यार डूबगौ

कर-कर थांरा-म्हारा

दरद रा खोल मती चौबारा।

बोझां-बोझां बांड खुवावै

सांप फिरै रळकारां

आप-आपरै भाव भजन में

फूंक भरै फणकारां

दरद रा खोल मती चौबारा।

डूबी ऊपर तीन बांस है

नाव पड़ी मंझधारा

झूठ सांच रा सांई करसी

अंत पंत निस्तारा

दरद रा खोल मती चौबारा।

डिगूं-पिचूं मनड़ौ क्यूं भरमै

सम सुख दुख संसारा

थांरी-म्हांरी बारी आसी

जद पड़सी पौबारा

दरद रा खोल मती चौबारा।

अेक मंत्र अर अेक तंत्र है

आओ वेद उचारां

अेक भाव सूं सगती संचां

सुर भर कामण गारा

दरद रा खोल मती चौबारा

राज समाज तेज-तप तपसां

जद रळमिळ जूंझारा

छान झूंपड़ी हुसी चानणौ

ज्ञान दीप उजियारा

दरद रा खोल मत चौबारा।

स्रोत
  • पोथी : मोती-मणिया ,
  • सिरजक : भीम पांडिया ,
  • संपादक : कृष्ण बिहारी सहल ,
  • प्रकाशक : चिन्मय प्रकाशन
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